जयपुर

करोड़ों का टिकट घोटाला पुरातत्व विभाग ने दबाया

एसीबी ने कई जुगाड़ लगाए, लेकिन घोटाला नहीं पकड़ पाए

जयपुर। महालेखा परीक्षक की टीम ने पुरातत्व विभाग के स्मारकों पर मशीनों में हेरफेर कर टिकटों में चल रहे घोटाले पकड़ लिया था, इसलिए विभाग को इस घोटाले की जांच करानी पड़ी, लेकिन इस टिकट घोटाले ने विभाग में एक अन्य टिकट घोटाले के भी सबूत दे दिए थे।

पुरातत्व विभाग आज तक इस घोटाले को दबाए बैठा है, जबकि यह घोटाला मशीन घोटाले से कई गुना बड़ा निकल सकता है, क्योंकि यह बरसों से चल रहा था। एसीबी ने भी इस घोटाले को पकड़ने के लिए कई जुगाड़ लगाए, लेकिन पता नहीं क्यों एसीबी भी इस घोटाले में कार्रवाई नहीं कर पाई है।

पुरातत्व विभाग में 1 अप्रेल 2012 से छपे कंपोजिट टिकट शुरू किए गए थे। घोटाला इन्हीं छपे कंपोजिट टिकटों में हुआ था और विभाग को इसके पुख्ता सबूत भी मिल गए, इसके बावजूद आज तक यह घोटाला फाइलों में दबा हुआ है। छपे हुए टिकटों के संचालन की शुरूआत के साथ ही नकली टिकट बिकने की शिकायतें मिलने लगी थी, लेकिन विभाग इस मामले में मौन रहा।

वर्ष 2014 में एक विदेशी महिला पर्यटक ने नकली टिकट दिए जाने की शिकायत एसीबी में की थी। एसीबी ने इस शिकायत के बाद आमेर महल के टिकट काउंटरों पर छापा मारा था। हालांकि इस छापे में एसीबी को नकली टिकट नहीं मिल पाए, लेकिन एक अन्य घोटाला सामने आ गया। छपे हुए टिकटों पर बिना निविदा के विज्ञापन छापने का नया मामला सामने आ गया।

इसलिए नहीं मिले सबूत

पुरातत्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि एसीबी टीम आमेर महल पहुंची और उन्होंने महल की पार्किंग में अपने वाहन खड़े कर दिए थे। पार्किंग शुल्क के लिए उनका पार्किंग ठेकेदार से विवाद हो गया और इस विवाद में एसीबी टीम का खुलासा हो गया। महल के सिक्योरिटी गार्डों ने एसीबी टीम की ठेकेदार से विवाद की सूचना अधिकारियों को पहुंचा दी और एसीबी टीम जब तक विवाद सुलझाकर टिकट काउंटरों पर पहुंची, तब तक पुरातत्व अधिकारियों ने टिकट काउंटरों से नकली टिकट गायब करवा दिए।

ऐसे पकड़ में आया घोटाला

वर्ष 2014 में महालेखा परीक्षक की टीम पुरातत्व विभाग के लेखों का ऑडिट कर रही थी। इस दौरान उन्हें जयपुर के प्रमुख स्मारकों आमेर, जंतर-मंतर और अल्बर्ट हॉल पर पर्यटकों की संख्या में काफी उतार-चढ़ाव दिखाई दिया, जबकि इस दौरान शहर में पर्यटकों की बाढ़ आई हुई थी। ऐसे में महालेखा परीक्षक के दल ने शहर के पांच स्मारकों पर एकसाथ छापा मारा और मशीन में हेरफेर कर किए जा रहे घोटाले की परत खुल गई।

इसके बाद विभाग ने घोटाले की प्रारंभिक जांच के लिए अधिकारियों की एक जांच कमेटी गठित कर दी। इस कमेटी ने जंतर-मंतर के स्टोर रूम की तलाशी ली तो यहां उन्हें छपे हुए कंपोजिट टिकटों की ऐसी चार काउंटर स्लिपों की बुकलेट मिली, जिनका सीरियल नम्बर एक ही थे। अधिकारियों ने इन बुकलेटों को जब्त कर लिया और उनकी जांच रिपोर्ट में भी इन बुकलेटों का जिक्र है, फिर भी आज तक विभाग ने इनपर कोई कार्रवाई नहीं की।

आमेर घोटाले का सबसे बड़ा केंद्र

पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि आमेर और जंतर-मंतर में बड़ी संख्या में नकली टिकटों की बिक्री हुई थी। छपे हुए कंपोजिट टिकट चलाने के एक-दो वर्ष बाद पुरातत्व विभाग ने टिकटों की दरों में वृद्धि की थी। इसके बाद विभाग के अधिकारियों ने नकली टिकटों पर बढ़ी हुई दरों की मुहर लगाकर बिकवाना शुरू कर दिया।

कुछ बड़ी ट्रेवल एजेंसियों को मुहर लगी टिकटों पर शक हुआ तो उन्होंने इन टिकटों को संभाल कर रखना शुरू कर दिया। बाद में कुछ लोगों ने आईटीआई से आमेर महल से बिके हुए कंपोजिट टिकटों की सूची मांगी और उससे नकली टिकटों के नंबरों का मिलान कराया तो साफ हो गया कि आमेर से नकली टिकटों की जमकर बिक्री की जा रही थी।

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