सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसन ने पिछले दिनों आयुर्वेद के जरिये उपचार करने वाले वैद्यों को दातों सहित शरीर के कुछ अन्य चुनींदा अंगों की शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की अनुमति दी गई। देश भर में ऐलोपैथी के जरिए प्रेक्टिस करने वालों की ओर से इस अनुमति का शांतिपूर्ण विरोध किया जा रहा है। इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) भी इस विरोध में शामिल है। आईडीए की जयपुर शाखा की ओर से 11 दिसम्बर को विरोध जताया जा रहा है। इस विरोध के तहत दांतों के डॉक्टर अपने अस्पतालों या क्लीनिक पर केवल आपातकालीन सेवाएं ही देंगे। वे काला रिबन और काला मास्क पहनकर कार्य करेंगे।
सरकारी आदेश स्थापित व्यवस्था को बर्बाद करने जैसा
आईडीए की जयपुर शाखा के अध्यक्ष डॉक्टर सतीश भारद्वाज का कहना है कि आयुर्वेद के वैद्यों को दातों की सर्जरी के लिए सरकार की ओर से अनुमति कोई सोचा-विचारा फैसला नहीं है। एलोपैथ में चार-पांच वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद डॉक्टर बनता है। यदि किसी डॉक्टर ने दांतों की चिकित्सा के लिए पढ़ाई की है तो स्नातक स्तर पर भी विशेषज्ञ के तौर पर पढ़ाई करता है और फिर स्नातकोत्तर में भी दांतों की चिकित्सा के संदर्भ में विशेषज्ञता हासिल करता है। इतना सब करने के बाद ही वह दातों की चिकित्सा की शुरुआत करता है। नया सरकारी आदेश देश में स्थापित चिकित्सा की व्यवस्था और प्रेक्टिस को बर्बाद करने जैसा है।
भविष्य में विरोध जो भी आकार लेगा, सरकारी की जिम्मेदारी होगा
आईडीए, जयपुर शाखा के सचिव डॉक्टर राजीव वशिष्ठ का कहना है कि कोरोना काल को ध्यान में रखते हुए 11 दिसम्बर का विरोध फिलहाल सांकेतिक है और शांतिपूर्ण है लेकिन सरकार ने यह फैसला वापस नहीं लिया तो भविष्य में डॉक्टरों का विरोध जो भी आकार लेगा, इसकी जिम्मेदारी सरकार की ही होगी।