यह सच नहीं है कि बिना खड़ग बिना ढाल ही भारत को आजादी मिल गयी। 15 अगस्त 1947 को मोहनदास कर्मचंद्र गांधी के नेतृत्व में चले अहिंसक आंदोलनों से घबराकर अंग्रेज भारत छोड़कर नहीं गये थे बल्कि हकीकत यह है कि देश के महान सपूत, सेनापति और कुशल योद्धा सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) के नेतृत्व में गठित आंजाद हिंद फौज की बढ़ती ताकत से परेशान होकर भारत छोड़ने में अपना भलाई समझी थी। देश आज, 23 जनवरी को अपने प्रिय सपूत नेताजी सुभाष बाबू की 125वीं जयंती (birth anniversary) मना रहा है। इसी दिन से देश मे इस साल गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत हो गई है। आज ही दिल्ली के इंडिया गेट पर उनकी मूर्ति का अनावरण (unveil) किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा (Hologram statue) का अनावरण कर रहे हैं।
ग्रेनाइट से बनेगी मूर्ति
इंडिया गेट पर लगाई जाने वाली मूर्ति नेताजी की अन्य किसी भी मूर्ति से ऊंची है। इसके लिए विशेषतौर पर तेलंगाना से जेड ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर से तैयार किया जा रहा है। इंडिया गेट पर लगाये जाने वाली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रस्तावित प्रतिमा 25 फुट ऊंची होगी। सिंगल पीस ग्रेनाइट स्टोन से बनी यह प्रतिमा मूर्तिकला का बेजोड़ उदाहरण होगी। इस पत्थर का चयन नेताजी की मजबूत छवि को ध्यान में रखकर किया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की प्रतिमा लगाई जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने रविवार को जयंती के मौके पर नेताजी को याद करके उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उनके अलावा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और गृह मंत्री अमित शाह ने भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि अर्पित की है.
गणतंत्र दिवस समारोह की फुल ड्रेस रिहर्सल
नेताजी के जन्मदिवस पर आज गणतंत्र दिवस परेड की नई दिल्ली में फुल ड्रेस रिहर्सल आयोजित की गई है। यह परेड विजय चौक से शुरू होकर नेशनल स्टेडियम तक पहुंचेगी। इसके अलावा आज शुरू हो रहे गणतंत्र दिवस समारोह में महात्मा गांधी के पसंदीदा ईसाई स्तुति गीतों में से एक ‘अबाइड विद मी’ की धुन को इस साल 29 जनवरी को होने वाले ‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह से हटा दिया गया है। ये धुन 1950 से ही बीटिंग रिट्रीट समारोह का हिस्सा रही है। इसकी जगह अब ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ धुन बजायी जाएगी। ‘बीटिंग रिट्रीट’ सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है जो उन दिनों से चली आ रही है जब सूर्यास्त के समय सैनिक युद्ध से अलग हो जाते थे। बिगुल की धुन बजने के साथ सैनिक लड़ना बंद कर अपने हथियार समेटते हुए युद्ध के मैदान से हट जाते थे।