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पुरा सामग्रियों की बर्बादी के लिए पुरातत्व विभाग जिम्मेदार

अधिकारियों की लापरवाही का सबूत सामने आया

जयपुर। राजधानी के केंद्रीय संग्रहालय में प्राचीन धरोहरों और पुरा सामग्रियों की बर्बादी के लिए पुरातत्व विभाग ही जिम्मेदार है। हाल ही में विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का सबूत सामने आया है। यदि अधिकारियों ने समय रहते काम किया होता तो आज प्रदेश की ऐतिहासिक पुरा सामग्रियां सुरक्षित होती।

हम बात कर रहे हैं 14 अगस्त की सुबह जयपुर में हुई अतिवृष्टि पर। भारी बारिश होने के कारण पुरातत्व विभाग के मुख्यालय और अल्बर्ट हॉल के बेसमेंट में बनी ममी गैलरी, रिकार्ड रूम और स्टोर रूम में चार से पांच फीट तक पानी भर गया था और इससे पुरा सामग्रियां और विभाग का रिकार्ड बर्बाद हो गया था।

इस दौरान बेसमेंट की गैलरी में रखी ऐतिहासिक मिश्र की ममी को बमुश्किल बचाया जा सका। अब समय के साथ-साथ पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का भांड़ा फूटने लगा है। सामने आया है कि अल्बर्ट हॉल में खरबूजा मंडी की ओर से पानी की आवक हुई थी।

सबकुछ बर्बाद होने के बाद पुरातत्व अधिकारियों को होश आया कि खरबूजा मंडी की ओर से आने वाला नाला जो अल्बर्ट हॉल के तीन ओर से घूम कर गंदे पानी और बरसाती पानी को सी-स्कीम के नाले की ओर ले जाता है, उसकी इस वर्ष सफाई ही नहीं हुई।

नगर निगम पर दोष मढ़ने की कोशिश

विभाग के उच्चाधिकारियों ने जब पानी भरने के बाबत अधिकारियों से जवाब तलब किया तो अधिकारियों ने इसका दोष नगर निगम पर मढ़ने की कोशिश की और बताया कि नगर निगम ने खरबूजा मंडी की ओर से आने वाले नाले की सफाई नहीं की, इसलिए म्यूजियम में पानी भरा।

नगर निगम को नाला साफ करने को कहा यह जानकारी मिलने के बाद पुरातत्व निदेशक पी सी शर्मा ने जेडीए और नगर निगम के अधिकारियों के साथ बैठक की और उन्हें नाले की जानकारी दी। बता दें कि रामनिवास बाग जेडीए के अधीन है, लेकिन इसमें से निकलने वाले नालों की सफाई की जिम्मेदारी नगर निगम की है।

पुरातत्व निदेशक के कहने के बाद नगर निगम ने इस नाले की सफाई का कार्य शुरू कराया। नाले से अब तक 50 से अधिक ट्रॉली मलबा निकाला जा चुका है, जिसके बाद से इस नाले में पानी की आवक शुरू हुई है। यदि यह नाला 14 अगस्त से पहले साफ हो जाता तो अल्बर्ट हॉल में पानी नहीं भरता। नाले के बंद होने के कारण ही अल्बर्ट हॉल में पानी भरा।

पुरातत्व अधिकारी इस लिए जिम्मेदार

विभाग के सूत्रों का कहना है कि पुरा सामग्रियों की बर्बादी के लिए विभाग के अधिकारी ही जिम्मेदार है। विभाग के कुछ चुनिंदा अधिकारी बरसों से राजधानी में मलाई वाली सीटों पर डेरा जमाए बैठे हैं। एक साथ कई-कई स्मारकों का उन्होंने चार्ज ले रखा है, जबकि कई अधिकारी यहां पर बिना काम के भी बैठे हैं। खुद अल्बर्ट हॉल के अधीक्षक करीब चार वर्षों से यहां तैनात है और उनके पास पांच स्मारकों का चार्ज है। वहीं एक अधिकारी तो करीब दस वर्षों से राजधानी में डेरा जमाए बैठे हैं।

कहा जा रहा है कि हर वर्ष नाले की सफाई होती थी, इस वर्ष नहीं हुई, अधिकारियों को इसकी जानकारी थी। जानकारी होने के बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, ऐसे में वह नुकसान की जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं। पुरातत्व विभाग की इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारी भी इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें भी इन समस्याओं की जानकारी थी।

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