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दिल्ली के बाद अब भोपाल से भी हटेगा बीआरटीएस…! जयपुर में भी बेकार साबित हुआ प्रोजेक्ट

दिल्ली के बाद अब मध्य प्रदेश के भोपाल में भी बीआरटीएस कॉरिडोर बंद करने का ऐलान हो चुका है। इस स्कीम की शुरुआत भोपाल में 15 साल पहले यह सोचकर की गई थी, इससे ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार होगा। लेकिन अब दावा किया जा रहा है कि इससे ट्रैफिक जाम और बढ़ गया है। यही हाल, राजस्थान की राजधानी जयपुर का भी है, जहां यह प्रोजेक्ट पूरी तरह फेल ही कहा जाएगा।
मध्य प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बड़ा फैसला लेते हुए भोपाल की सड़कों से बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) को हटाने का फैसला लिया है। यह पहली बार नहीं है, जब किसी शहर से बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाया जा रहा है। इससे पहले दिल्ली में भी करीब 8 साल तक रहने के बाद बीआरटीएस कॉरिडोर को हटा दिया गया था। सवाल यह है कि आखिर दिल्ली के बाद भोपाल में भी बीआरटीएस कॉरिडोर प्रोजेक्ट आखिर सफल क्यों नहीं हो पाया।
क्या होता है बीआरटीएस कॉरिडोर
बीआरटीएस यानी बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम बसों के लिए बनाया जाने वाला कॉरिडोर है। इसे चौड़ी सड़कों के बीचों-बीच बनाया जाता है, जिसमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए चलने वाली बसें चलती हैं। इस कॉरिडोर में बसों के अलावा किसी अन्य वाहन को जाने की इजाजत नहीं होती। बीआरटीएस कॉरिडोर यह सोचकर बनाया जाता है कि इसमें बसें चलने के कारण ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल सकेगी। साथ ही बसों के लिए अलग कॉरिडोर होने के कारण लोगों को जाम से मुक्ति मिलेगी।
भोपाल में कब हुई शुरुआत
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तत्कालीन शिवराज सिंह चैहान सरकार ने साल 2009 में बीआरटीएस कॉरिडोर के लिए निविदाएं जारी की थीं। साल 2011 में एक संसोधन के बाद इसे मंजूरी दे दी गई। इसके बाद 27 सितंबर 2013 को बीआरटीएस का काम पूरा हुआ। इसमें मिसरोद से लेकर संत हिरदाराम नगर (पूर्व में बैरागढ़) तक 24 किलोमीटर के कॉरिडोर का निर्माण पूरा किया गया। शिवराज सरकार ने इस प्रोजेक्ट में करीब 15 साल पहले 360 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
सफल क्यों नहीं हुआ प्रोजेक्ट
दरअसल, बीआरटीएस कॉरिडोर यह सोचकर बनाया गया था कि बसों के लिए अलग कॉरिडोर बन जाने के बाद सड़कों पर ट्रैफिक काफी कम हो जाएगा, इसके बाद सिर्फ छोटे वाहन ही बचेंगे जो कॉरिडोर के बगल की सड़कों के जरिए आराम से आवागमन कर पाएंगे। लेकिन लोगों की मानें तो ऐसा हुआ नहीं। बीआरटीएस कॉरिडोर के कारण भोपाल शहर की चैड़ी सड़कें भी सकरी हो गईं। काफी सारा हिस्सा बीआरटीएस कॉरिडोर ने घेर लिया, जिसके कारण सड़कों पर ट्रैफिक कम होने की जगह और ज्यादा बढ़ गया। इसके साथ ही कई बार यह भी देखा गया कि लोग अपनी कारें या बाइक लेकर भी बीआरटीएस कॉरिडोर से गुजरने लगे। इसे रोकने के लिए कॉरिडोर में कर्मचारियों की तैनाती भी की गई, लेकिन इससे भी कोई ज्यादा फर्क नजर नहीं आया।
दिल्ली से कब-क्यों हटा
राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां बीआरटीएस कॉरिडोर की शुरुआत कांग्रेस शासनकाल में हुई थी। तब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं। साल 2008 में दिल्ली के अंदर बीआरटीएस की पहली लाइन खोली गई। प्लान के मुताबिक 5।8 किलोमीटर लंबे इस गलियारे को इस तरह डिजाइन किया गया था कि प्रति घंटे 12 हजार यात्रियों को ले जाने वाले पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाहन गुजर सकें। हालांकि, आम आदमी पार्टी की सरकार ने इस प्रोजेक्ट को फेल बताते हुए कॉरिडोर को खत्म कर दिया। तब आप सरकार ने दावा किया था कि इससे जनता को सुविधा की जगह असुविधा हो रही है।
क्या हर जगह फेल हुआ प्रोजेक्ट
दिल्ली और भोपाल में बीआरटीएस कॉरिडोर फेल जरूर हुआ। लेकिन एक शहर ऐसा भी है, जहां बीआरटीएस योजना सफल हुई है। यह शहर है, गुजरात का गांधीनगर। अहमदाबाद का बीआरटीएस कॉरिडोर इतना बेहतरीन है कि वह 2010 में वाशिंगटन में ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च बोर्ड से प्रतिष्ठित सस्टेनेबल ट्रांसपोर्ट अवार्ड भी जीत चुका है। दरअसल, अहमदाबाद में पहले 3 महीने के लिए बीआरटीएस को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया गया, इसके बाद लोगों से प्रतिक्रिया लेकर इसके डिजाइन में कई बदलाव किए गए। प्रतिक्रिया के लिए अहमदाबाद नगर निगम ने स्टूडेंट्स, प्रोफेसर, शिक्षक और कई बड़े उद्योगपतियों को भी चुना। इस तरह समय-समय पर अहमदाबाद बीआरटीएस को अपग्रेड किया गया और आज वहां बीआरटीएस परियोजना सफलता के साथ चलाई जा रही है।

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