जयपुर

जयपुर के ऑक्सीजन सिलेंडरों को बचाना होगा : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वन विभाग ने नाहरगढ़ अभ्यारण्य की 1200 बीघा जमीन से हटाया था रसूखदारों का कब्जा, वृक्ष रहित इस भूमि पर आज तक नहीं हो पाया वृक्षारोपण

राजस्थान की राजधानी से सटे हुए नाहरगढ़ अभ्यारण्य को जनप्रतिनिधियों और रसूखदारों की बुरी नजर लगी हुई है। हर कोई किसी न किसी बहाने अभ्यारण्य की जमीन पर कब्जा करने की कोशिशों में लगे रहते हैं। वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद 29 जून 2020 को विश्वकर्मा थाना इलाके में अभ्यारण्य के आकेड़ा डूंगरी स्थित बीड़ पापड़ इलाके की 1200 बीघा जमीन को रसूखदारों के कब्जे से मुक्त कराया था, लेकिन विभाग एक वर्ष बाद भी इस जमीन के लिए कोई कार्ययोजना तैयार नहीं कर पाया है।

बीड़ पापड़ में मुक्त कराई गई जमीन पर एक पूर्व राज्यमंत्री सहित कई अन्य रसूखदार लोगों ने पिछले करीब 20 वर्षों से अधिक समय से अवैध अतिक्रमण कर अपने आलीशान फार्महाउस बना रखे थे। इनमें जज, आईएएस और आईपीएस और कई राजनेता शामिल थे। वन विभाग ने बाद में इसी जमीन की कीमत करीब 2 हजार करोड़ रुपए आंकी थी। जबकि यह भूमि नाहरगढ़ वन क्षेत्र के लिए नोटिफाइड भूमि है। रसूखदारों के अतिक्रमण हटाने के दौरान विश्वकर्मा, मुरलीपुरा, हरमाड़ा और चौमूं थाना पुलिस से 100 से अधिक जवान मौके पर मौजूद रहे। वन विभाग के भी 100 कर्मचारी अधिकारी मौके पर रहे और अतिक्रमण हटाया।

वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञ कमल तिवाड़ी का कहना है कि वन विभाग इस मामले में की गई शिकायत पर पहले ही ध्यान दे लेता तो इतनी नौबत ही नहीं आती। अभ्यारण्य में सैंकड़ों जगहों पर अतिक्रमण की शिकायतें है और वन भूमि पर अतिक्रमण के कई केस वन विभाग के पास पेंडिंग पड़े हैं। वर्षों से उनपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। ऐसे में अतिक्रमण के पीछे वन अधिकारियों की मिलीभगत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। अतिक्रमण के मामलों में वन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, जब तक इनपर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक इनकी लापरवाही खत्म नहीं होगी।

नाहरगढ़ में वाणिज्यिक गतिविधियों के मामले में एनजीटी और लोकयुक्त में परिवाद पेश करने वाले राजेंद्र तिवाड़ी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बीड़ पापड़ में अतिक्रमण हटाया, लेकिन अभी तक वहां वृक्षरोपण नहीं किए जाने से सह जमीन फिर अतिक्रमियों के निशाने पर आ जाएगी। वन विभाग को चाहिए कि जुलाई से शुरू होने वाले मानसून में यहां पूरी जमीन पर वृक्षारोपण कराया जाए और वन विकसित किया जाए, तभी यहां अतिक्रमण पर लगाम लगेगी। अतिक्रमी रसूखदारों को यह समझ लेना चाहिए कि यदि जयपुर का वन क्षेत्र बर्बाद होता है तो उसका असर शहर की जनता के साथ-साथ उनपर भी पड़ेगा, वह शहर के पर्यावरण प्रदूषण से बच नहीं सकते हैं।

धरोहर बचाओ समिति के संरक्षक एडवोकेट भारत शर्मा ने कहा कि इकोलॉजिकल जोन में अतिक्रमण की बात मानी जा सकती है, लेकिन यहां तो संरक्षित वन क्षेत्र में वाणिज्यिक गतिविधियां चल रही है। जयपुर के पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार को चाहिए कि वह पर्यटन के साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखे और अभ्यारण्य में चल रही वाणिज्यिक गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाए। जयपुर के वन भी शहर की जनता की धरोहर है।

तालकटोरा एवं कदम्ब कुंड विकास समिति के अध्यक्ष मनीष सोनी का कहना है कि जयपुर के पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार सख्त कदम उठाए और नाहरगढ़ अभ्यारण्य व झालाणा वन क्षेत्र में ज्यादा से जयादा वृक्षारोपण व वन विकास कार्यक्रम पर ध्यान दे। कम से कम वृक्ष रहित वन भूमि पर तो वृक्षारोपण किया जाना चाहिए, ताकि उनपर अतिक्रमण की संभावनाओं को टाला जा सके।

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