दिल्लीराजनीति

नीतीश के ‘महा हथियार’ के जवाब में पीएम मोदी ने रचा ‘दलित व्यूह’, 2024 में दिखेगा धमाका

लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच मुद्दा सेट करने की आपाधापी दिख रही है। इंडिया गठबंधन की ओर से बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में जातीय सर्वे कराने के बाद इसे देश भर में कराने की बात कहकर ट्रंप कार्ड खेलने का काम किया है। वहीं, इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलित कार्ड के जरिए इसका जवाब देने की कोशिश की है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से खेले गए जातीय सर्वे के ट्रंप कार्ड के विरुद्ध बीजेपी अब दलित एजेंडे को सेट करने में लग गई है। इसकी तैयारी को इसी बात से समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना के विधान सभा चुनाव में बिहार में दलित उत्पीड़न के एक मुद्दे को उठा रहे हैं। यह सच है कि लोकसभा चुनाव के मुहाने पर सबसे ज्यादा बीजेपी की नजरों में बिहार चढ़ चुका है। वजह भी साफ है कि अक्सर बिहार चुनावी एजेंडा सेट करने का प्रक्षेपण स्थल बनता रहा है। एक बड़े परिपेक्ष्य में 1977 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2024 का लोकसभा चुनाव।
दलित एजेंडा क्यों?
जातीय सर्वे के बाद बीजेपी सकते में आ गई है। यह जानते हुए भी कि आरक्षण की सीमा बढ़ा कर पिछड़ों और अतिपिछड़ों की हकमारी को देने को बीजेपी भी तत्पर रही है। पर इस राह में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी एक कदम आगे बढ़ चुकी है। वैसे भी लालू यादव के विरुद्ध राजनीति में जब नीतीश खड़े हुए थे तो उनकी राजनीति का प्लेटफार्म भी यादव माइनस पिछड़ी जातियां ही थी और नीतीश कुमार इस मुहिम में सफल भी हुए। पिछड़ों और अतिपिछड़ों का साथ भी नीतीश कुमार को मिला था।
2015 वाली जंग के आसार
अब तो एक बार फिर राजद से हाथ मिलाकर नीतीश कुमार ने 2015 वाला माहौल पैदा कर दिया। यह वही विधान सभा का चुनाव था जहां बीजेपी को बुरी तरह पराजय झेलने पड़ी थी। इसके विरुद्ध बीजेपी का ध्यान दलितों की 20 प्रतिशत बढ़ी आबादी पर है। महागठबंधन के विरुद्ध बीजेपी को टक्कर देने का एक रास्ता यही है। वह भी इसलिए कि दलितों के नामचीन नेता चिराग पासवान और जीतन राम मांझी और कभी बसपा के सारथी बने जनक राम आज बीजेपी के साथ हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी का इस खेल में उतरना
आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी दलित कार्ड खेलने जा रही है। इसकी विश्वसनीयता और जरूरत इसी बात से समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना के विधान सभा चुनाव में दलित कार्ड का नैरेटिव सेट करते दलित उत्पीड़न का मामला उठाया। बिहार के एक प्रसंग की चर्चा करते हुए पीएम ने कहा-
विपक्षी गठबंधन ने जो जातिवाद का छतरी खोल रखा है, उसमें शामिल बिहार के मुख्यमंत्री जातीय एजेंडा ले कर घूम रहे हैं। मुझे याद है ये मेरे करीबी मित्र और दलित नेता रामविलास पासवान को लगातार अपमानित करते रहे हैं। यहां तक कि रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजे जाने का समर्थन देने में आना कानी कर रहे थे। यही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ दिन पहले सदन के फ्लोर पर एक और दलित नेता को अपमानित करने का काम किया। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी जो काफी संघर्ष के बाद इस मुकाम पर पहुंचे उन्हें भरे सदन में अपमानित किया गया। पूर्व सीएम जो दलितों में भी अति दलित हैं उन्हें बहुत ही निर्लज्जता के साथ यह जताया गया कि आप सीएम बनने के लायक नहीं थे। दलितों के अपमान की भावना, अहंकार की भावना कांग्रेस और उसके सहयोगियों की पहचान है।’
पीएम के बयान पर जदयू का पलटवार
जदयू के रणनीतिकार ने पीएम की ओर से दलितों की पक्षधरता को हल्के में नहीं लिया। पीएम के बोलने के बाद दलित मतों के डावांडोल होते देख चैतरफा हमला बोलना शुरू कर दिया। जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। चुनावी एजेंडा सेट करने के लिए तेलंगाना आना पड़ा। पीएम को दलितों से इतना प्रेम है तो जनक राम को क्यों नहीं नेता प्रतिपक्ष बनाया। हिम्मत है तो जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दें। बीजेपी बताए रामविलास पासवान का सामान किसने फेंकवाया। रामनाथ कोविंद से सदन भवन का उद्घाटन नहीं करा कर किसने अपमानित करने का काम किया। सबसे बड़ी बात तो यह कि जनगणना नहीं कराया। जनगणना पर ही दलितों के आरक्षण का विस्तार मिलता है।
50 प्रतिशत दलित आज भी गरीब: मनोज शर्मा
बीजेपी के प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि नीतीश कुमार ने जबसे एनडीए छोड़ कर महागठबंधन से नाता जोड़ा है, उन्हें अहंकार हो गया है। वे अपने आप को ऊंट तक कहने लगे है। जिस भाषा का प्रयोग अभी नीरज जी ने किया, जिस भाषा का प्रयोग इनके राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह करते हैं और जिस भाषा का प्रयोग नीतीश जी ने सदन में किया वह तमाम मर्यादाओं को पार कर गया। पिछले दिनों सीएम नीतीश कुमार का महिलाओं और दलित के प्रति सदन में जो वक्तव्य आया वह निर्लज्जता और अज्ञानता का प्रतीक है। दलितों के हितैषी हैं तो लगभग 30 वर्षों के कार्यकाल में दलित अभी भी 50 प्रतिशत गरीब क्यों?

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