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नौकरी में परिवीक्षा अवधि के दौरान मातृत्व अवकाश मां का अधिकारः महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण

कई बार ऐसी समस्या आती है कि नौकरी के लिए साक्षात्कार देते समय महिलाएं गर्भवती होती हैं और नौकरी लगते-लगते उन्हें मातृत्व अवकाश यानी मैटरनिटी लीव की जरूरत पड़ ही जाती है। इस परिस्थिति में नियोक्ता कई बार यह कहते हुए मैटरनिटी लीव देने से मना कर देते हैं कि फिलहाल महिला का नौकरी में परिवीक्षा अवधि ( प्रोबेशन पीरियड) पूरी नहीं हुई है। ऐसे में महिला को मिलने वाली सवैतनिक मैटरनिटी लीव नहीं मिल सकती है। लेकिन, महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Maharashtra Administrative Tribunal) ने 2015 के राज्य के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें मुंबई की तत्कालीन 28 वर्षीय सहायक वन संरक्षक को मातृत्व अवकाश देने से मना किया गया था। महाराष्ट्र ट्रिब्यूनल का कहना है कि अगर कोई महिला प्रोबेशन पीडियड के दौरान मां बनती है तो उसे मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
फैसला करते हुए महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने कहा कि अगर कोई प्रोबेशनर कर्मचारी मां बनना चाहती है, तो उसकी वरिष्ठता प्रभावित नहीं होनी चाहिए। यह उसका मूल मानवीय और प्राकृतिक अधिकार है। एमएटी की सदस्य मेधा गाडगिल द्वारा शुक्रवार को सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि राज्य एक कल्याणकारी और प्रगतिशील राज्य है, जिसने हर महिला कर्मचारी को 180 दिन की मातृत्व छुट्टी की गारंटी दी है। एसजीएनपी में वर्तमान में प्रभागीय वन संरक्षक महिला ने पिछले साल आवेदन दायर किया था। आवेदन में कहा गया कि प्रोबेशन पीरियड की महिला अगर मां बनती है तो उसे भी अपने नवजात शिशु के साथ रहने का उतना ही अधिकार है, जितना स्थायी कर्मचारी का।
उल्लेखनीय है कि महिला ने वर्ष 2015 के महाराष्ट्र सरकार के आदेश को चुनौती दी थी। वन विभाग ने जनवरी 2015 में 180 दिनों के मातृत्व अवकाश और 2013 में लोक सेवक के परिवीक्षा के दौरान लिये गए अतिरिक्त 43 दिनों के प्रसवोत्तर अवकाश को ‘असाधारण अवकाश’ के रूप में नियमित कर दिया था। महिला के वकील ने तर्क दिया कि 2023 में राज्य ने उनके मातृत्व अवकाश पर विचार करने में विफल रहते हुए मान लिया कि उनकी परिवीक्षा अवधि 2014 के मध्य के बजाय मार्च 2015 में समाप्त हो गई थी और इससे उनकी वरिष्ठता समाप्त हो गई।
ट्रिब्यूनल कोर्ट (एमएटी) ने क्या कहा
एमएटी ने कहा कि हालांकि किसी भी परिवीक्षाधीन व्यक्ति को अनिवार्य रूप से एक या दो वर्ष की अवधि पूरी करनी होगी और इसका समाधान परिवीक्षा अवधि की गणना करने की पद्धति को बदलने में है। एमएटी ने फैसला सुनाया कि किसी कर्मचारी के मूल्यांकन के लिए परिवीक्षा अवधि को तभी बढ़ाया जा सकता है जब काम पर वापस लौटने के बाद संबंधित महीनों में व्यक्ति का प्रदर्शन ‘असंतोषजनक’ पाया जाता है।
महाराष्ट्र ट्रिब्यूनल ने कहा कि अगर मातृत्व के बाद काम पर वापस लौटने के बाद 180 दिनों की अवधि में उसका काम संतोषजनक है, तो उसकी वरिष्ठता उसके बैचमेट के साथ उसकी मूल परिवीक्षा अवधि की समाप्ति तिथि से मानी जाएगी। फैसले में कहा गया कि इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि सरकार को परिवीक्षाधीन व्यक्ति का मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त और कानूनी रूप से अनिवार्य अवधि मिले। इसके साथ ही बच्चे के मां के साथ रहने और मां के बच्चे के साथ रहने के ‘समान रूप से मूल्यवान अधिकार’ सुरक्षित रहें।
दरअसल में महाराष्ट्र सरकार के निर्देश के आधार पर राज्य ने अपने कार्यों को उचित ठहराने के लिए दो वर्ष के प्रशिक्षण सहित तीन वर्ष की परिवीक्षा के भर्ती नियमों का हवाला दिया। वकील ने तर्क दिया मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत मातृत्व अवकाश वैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि ‘ऐसी महिला कर्मचारियों की वरिष्ठता उनके मातृत्व अवकाश के आधार पर उनके बैचमेट्स से कम नहीं होनी चाहिए।’ एमएटी ने निर्देश दिया कि उनके 180 दिनों के अवकाश को मातृत्व अवकाश और 43 अतिरिक्त दिनों को चाइल्डकेयर लीव के रूप में माना जाए।

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