आतंकइस्लामाबाद

पाकिस्तान के 24 सैनिकों का काल बना टीजेपी: 2 टन बारूद से उड़ाया आर्मी बेस, यह नया दुश्मन कौन

पाकिस्तानी सेना इन दिनों अपने ही रचे चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। जिस आतंकवाद को पाकिस्तानी सेना ने पाला-पोसा, वह अब उसी के लिए काल बन गया है। मंगलवार को पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान जिले में आतंकवादियों ने एक पुलिस स्टेशन में विस्फोटक से भरे ट्रक को घुसा दिया, जिसमें कम से कम 24 सैनिक मारे गए। इस हमले की जिम्मेदारी एक नए नवेले आतंकवादी समूह तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान (टीजेपी) ने ली है।
टीजेपी पाकिस्तान में तेजी से अपनी ताकत बढ़ा रहा है। यह समूह पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के खिलाफ हाल में किए गए कई हमलों में शामिल रहा है। टीजेपी ने इसी साल जुलाई में अशांत बलूचिस्तान प्रांत में एक आत्मघाती हमला किया था, जिसमें 12 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हुई थी।
तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान क्या है?
टीजेपी का प्रतीक चिन्ह आमतौर पर धार्मिक किताबें रखने के लिए लकड़ी के बने स्टैंड के ऊपर दो तलवारें हैं, जिसके बैकग्राउंड में पाकिस्तान का गलत नक्शा लगा हुआ है। इस नक्शे में भारत के अभिन्न अंग जम्मू और कश्मीर को गलत तरीके से दिखाया गया है। वाॅशिंगटन डीसी स्थित थिंक टैंक मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमईएमआरआई) के अनुसार, इस साल फरवरी में स्थापित टीजेपी ने मौलाना अब्दुल्ला याघिस्तानी को अपना अमीर और मुल्ला मुहम्मद कासिम को अपना प्रवक्ता नामित किया है।
कब से चर्चा में आया टीजेपी
12 मई, 2023 को टीजेपी ने उत्तरी बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कैंप पर हमला किया था। यह सैन्य शिविर पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल फ्रंटियर कोर (एफसी) का था। मई में, टीजेपी समूह ने बलूचिस्तान में एफसी कैंप पर हमला करने वालों में से छह लोगों की तस्वीरें जारी कीं। इन तस्वीरों में हमलावरों को शहीद का दर्जा किया गया था। टीजेपी खुद को पाकिस्तानी सेना का सबसे बड़ा दुश्मन बताता है। वह पाकिस्तानी सेना को एक आक्रमणकारी और औपनिवेशिक ताकतों का संरक्षक बताता है। इसके अलावा वह पाकिस्तान में शरिया कानून का हिमायती है।
तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान का घोषित लक्ष्य क्या हैं?
एक रिपोर्ट में बताया गया था कि इसी साल फरवरी में टीजेपी के संस्थापक मौलाना अब्दुल्ला याघिस्तानी ने बताया था कि उनका समूह तहरीक-ए-जिहाद ‘शेख उल हिंद’ (महमूद हसन देवबंदी) से प्रेरित है, जो उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थित दारुल उलूम देवबंद से संबंधित थे। टीजेपी का दावा है कि ‘शेख-उल-हिंद का आंदोलन जिस उद्देश्य से उभरा था, वह पाकिस्तान की आजादी के बाद नष्ट हो गया है।’
यह समूह पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करने, इस्लाम के प्रमुख सिद्धांतों की बहाली और औपनिवेशिक ताकत से लड़ना अपना मकसद बताता है। संगठन की स्थापना की घोषणा करते हुए टीजेपी के बयान में कहा गया, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सशस्त्र जिहाद के अलावा, पाकिस्तान में इस्लामी व्यवस्था को लागू करना संभव नहीं है।’
शेख उल हिंद का भारत से क्या संबंध
शेख उल हिंद महमूद हसन देवबंदी को दी गई पदवी है। वह भारतीय मुस्लिम स्कॉलर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सिपाही थे। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना में भी योगदान दिया था। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए सिल्क लेटर मूवमेंट शुरू किया था। देवबंदी आंदोलन मुस्लिम जीवन में इस्लाम के प्रमुख सिद्धांतों को बहाल करने के लिए शुरू किया गया था। 1866 में शुरुआत में, इसका लक्ष्य 1857 की क्रांति के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने में विफल रहने के बाद अधिक ताकत के साथ अंग्रेजों से लड़ना भी था।

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