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पुरा सामग्रियों का प्रदर्शन ही बचाव का अंतिम उपाय

पुरातत्व विभाग को बदलना होगा काम का ढर्रा

धरम सैनी

जयपुर। हेरिटेज ट्यूरिज्म के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध राजस्थान के सेंट्रल म्यूजियम में बारिश के पानी से हुई पुरा सामग्रियों की बर्बादी के बाद कहा जा रहा है कि पुरातत्व विभाग को अब अपने काम का ढर्रा बदलना पड़ेगा।

पूरे प्रदेश में विभाग के स्मारकों और संग्रहालयों में पुरातत्विक सामग्रियों का बड़ा भंडार है। विभाग ने इस भंडार को स्टोर में दबा रखा है, जहां यह धूल फांक रहा है और धीरे-धीरे बर्बाद हो रहा है। हाल यह है कि संग्रहालयों में लगे क्यूरेटर संग्रहालय और स्टोर में रखी पुरा सामग्रियों को बदल कर भी प्रदर्शित नहीं करते हैं।

विभाग के अधिकारी दशकों से इन पुरा सामग्रियों को प्रदर्शित करने से बचते रहे, लेकिन अल्बर्ट हॉल की घटना के बाद आवज उठने लगी है कि विभाग इन सामग्रियों को प्रदर्शित करे, ताकि एक ओर तो इनकी सार संभाल होती रहे, वहीं दूसरी ओर इनके प्रदर्शन से प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। इस घटना के बाद तो खुद विभाग के मंत्री ने पुरा सामग्रियों के प्रदर्शन के निर्देश दिए हैं।

यहां काम हुआ तो मिला फायदा

करीब दो वर्ष पूर्व चित्तौडग़ढ़ के फतेहप्रकाश महल के दरबार हॉल में विजिबल स्टोरी बनाई गई गई। इस हॉल को इस तरह से तैयार कराया गया कि ऐसा लगे जैसे यहां असल में दरबार लगा हो। महल के कुछ अन्य हिस्सों में वूमन ऑफ मेवाड़ की गैलरी बनाई गई है, जिसमें मीरां बाई, पन्ना धाय, रानी पद्मिनी आदि का इतिहास दर्शाया गया है।

उदयपुर संभाग के पुरातत्व अधिकारियों का कहना है कि पहले यहां पर्यटक आता और खाली पड़े महल को 15-20 मिनट में देखकर बाहर निकल जाता था। अब यहां पर्यटक आता है तो उसे महल देखने में करीब 45 मिनट से ज्यादा का समय लगता है। महल में पुराने जमाने का माहौल देखकर पर्यटक को भी अच्छा लगता है।

नीति आयोग की रिपोर्ट में भी इसी पर फोकस

केंद्र सरकार के नीति आयोग की हेरिटेज पर एक नई रिपोर्ट ‘इम्प्रूविंग हैरिटेज मैनेजमेंट ऑफ इंडिया’ में भी चित्तौडग़ढ़ में हुए कार्य का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि इस तरह से स्मारकों और संग्रहालयों में खाली पड़े स्पेस को काम में लिया जाए। आयोग ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को तो इसके निर्देश दिए हैं कि लाल किला और एएसआई के अन्य स्मारक जो खाली पड़े हैं, वहां स्पेस का उपयोग किया जाए।

जयपुर का यह हाल

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पुरा सामग्रियों का उचित प्रदर्शन हो तो इसका प्रदेश के पर्यटन उद्योग पर अच्छा असर होगा। जयपुर को ही लें तो यहां सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल आमेर को पर्यटक मात्र एक घंटे में देखकर बाहर निकल आता है। उसके बाद वह शहर के अन्य पर्यटन स्थलों को दिन में देखकर शहर से बाहर चला जाता है। स्मारकों पर पर्यटकों को प्राचीन इमारत के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। आमेर जैसा ही हाल हवामहल और नाहरगढ़ का है। आमेर के दलारामबाग में पांच-छह वर्ष पूर्व गैलरियां तैयार कराई गई थी, लेकिन आज तक इनमें कुछ भी प्रदर्शित नहीं किया गया।

यदि आमेर, हवामहल और नाहरगढ़ में जयपुर के इतिहास को दर्शाती हुई गैलरियां बनाई जाएं और उनमें कुछ पुरा सामग्रियों का भी प्रदर्शन किया जाए तो पर्यटक को यहां नया अनुभव मिलेगा और उसका शहर में स्टे एक दिन से बढ़कर तीन दिन हो सकता है। इसका फायदा शहर के पर्यटन को मिलेगा। आमेर, हवामहल और नाहरगढ़ में पिछले दो दशकों में करोड़ों रुपयों के संरक्षा और जीर्णोद्धार कार्य कराए गए और यहां गैलरी खोलने के लिए काफी जगह उपलब्ध है। सुरक्षा का भी इन स्थानों पर पुख्ता प्रबंध है।

नीति आयोग और एएसआई की सलाहकार सदस्य शिखा जैन का कहना है कि उनकी संस्था द्रोण ने जिस तरह फतेहप्रकाश महल में गैलरी डवलप की है, नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद दिल्ली के लाल किले में भी चार-पांच गैलरी बनाई गई है। साथ ही यहां पर मुगल काल की पुरा सामग्रियां भी प्रदर्शित की गई है। यदि इसी तरह राजस्थान के स्मारकों में भी काम कराया जाए, तो यह प्रदेश के पर्यटन को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिस जगह की पुरा सामग्रियां हैं, उन्हें उसी जगह के स्मारकों में प्रदर्शित किया जाए।

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