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श्रीराम के लिए कोर्ट में पहाड़ बन गए परासरन…! सुप्रीम कोर्ट में अकाट्य तर्कों से पाई विजयश्री

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार में अटॉर्नी जनरल रहे। मनमोहन सरकार उन्हें पद्म विभूषण देती है। मोदी सरकार में रामकाज के लिए 92 वर्ष की उम्र में कोर्ट की लंबी-लंबी कार्यवाही में भाग लिया।
बात उस समय की है, जब सुप्रीम कोर्ट में रामजन्भूमि विवाद पर जोरदार बहस शुरू हो चुकी थी। रामलला विराजमान की ओर अपने तर्कों को रखने वाले वकील की उम्र 92 साल की हो चुकी थी। इस बुजुर्ग को देखकर संविधान पीठ के 5 जजों ने एक सुर में कहा कि आप चाहें तो बैठकर अपने तर्कों को रख सकते हैं, सुप्रीम कोर्ट आपको इसके लिए इजाजत देता है। पर इस बुजुर्ग वकील को ‘राम काज किए बिना, मोही कहां बिश्राम’ वाली तुलसीदास की लिखी सूक्ति याद आ रही थी।
वकील साहब ने जजों के प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। कोर्ट की लंबी, उबाऊ और थका देने वाली बहसों के समय घंटों खड़ा रहकर गुजारे और इतिहास रच दिया। न्याय की दुनिया में बार के पितामह की संज्ञा पा चुके इस बुजुर्ग का नाम केशव अयंगर परासरन है, जो अयोध्या विवाद में रामलला के पक्ष में फैसला आने के बाद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लोग इन्हें राम के हनुमान की संज्ञा दे चुके हैं।
केशव अयंगर परासरन वह शख्स हैं, जो देश की हर सरकारों के लिए प्रिय रहे हैं। राजनीतिक रूप से, परासरन की 1970 के दशक से लगभग हर सरकार को तलाश रहती है। इसके बावजूद कि वे राजनीतिक नेतृत्व से अपनी असहमति को खुलेआम प्रकट करते रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें पद्मभूषण मिलता है। मनमोहन सरकार उन्हें पद्मविभूषण देती है।
इससे पहले इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार के समय अटॉर्नी जनरल होते हैं। सत्य की रक्षा के लिए एक मसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना इस्तीफा देने की पेशकश करते हैं। फिर भी इंदिरा गांधी उनको पनिशमेंट की बजाय प्रोमोट करती हैं। उनके अदालती भाषण अक्सर हिंदू धर्मग्रंथों पर व्याख्यान जैसे होते हैं। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल ने उन्हें ‘अपने धर्म से समझौता किए बिना कानून में उनके योगदान के लिए भारतीय बार का पितामह’ कहा।
कांग्रेस सरकारों के साथ लंबे जुड़ाव का नहीं पड़ा असर
जब हम परासरन के करियर पर नजर डालते हैं तो देखते हैं कि वह जनता से चुनी गई हर सरकार के प्रिय रहे हैं। हालांकि कांग्रेस सरकारों के दौरान उन्होंने देश की कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है। 9 अक्टूबर, 1927 को जन्मे परासरन ने 1976 और 1977 के बीच तमिलनाडु के सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्य किया। 1983 से 1989 के बीच भारत के अटॉर्नी जनरल के रूप में कार्यरत रहे।
जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक मसौदा और संपादकीय समिति नियुक्त की, तो परासरन उसमें भी थे। वह राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। आम तौर पर देखा गया है कि लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रह चुके लोग अपने को सेक्युलर दिखाने के लिए राम जन्मभूमि के नाम पर हिंदुओं की सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव की बात करने लगते हैं। पर परासरन रामलला के लिए खुलकर सामने आते हैं और अपने तर्कों से सुप्रीम कोर्ट को यह मानने पर मजबूर कर देते हैं कि अयोध्या में बाबरी का क्या काम है?
जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें शुरू कीं, तो उन्होंने हिंदुओं के लिए राम जन्मभूमि के महत्व को इस प्रकार वर्णित किया, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (मां और मातृभूमि ऊपर स्वर्ग से भी महान हैं)। राम जन्मभूमि से पहले, परासरन ने सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा का प्रतिनिधित्व किया था कि क्या मासिक धर्म आयु वर्ग की महिलाओं को केरल मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
जब इस्तीफे की पेशकश की
1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में जन्मे परासरन के पिता केशव अयंगर भी एक वकील और वैदिक विद्वान थे। परासरन के तीन बेटे मोहन, सतीश और बालाजी भी वकील हैं। परासरन ने 1958 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी प्रैक्टिस शुरू की। आपातकाल के दौरान, वह तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे और 1980 में भारत के सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए। भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में, उन्होंने सरकार को सलाह दी कि वह द इंडियन एक्सप्रेस की इमारत को ध्वस्त करने के लिए जारी कारण बताओ नोटिस पर कार्रवाई न करें क्योंकि यह कानूनी रूप से अस्थिर था।
हालाँकि, इंदिरा गांधी ने उनकी राय को मानने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने अदालत में सरकार का बचाव करने से इनकार कर दिया। जब पेश होने के लिए मजबूर किया गया तो इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। सरकार ने, उनके सार्वजनिक बयान के बावजूद, न केवल उन्हें पद पर बनाए रखा बल्कि दो महीने में उन्हें भारत के अटॉर्नी जनरल के रूप में पदोन्नत किया। इस तरह के परासरन ने 1983 से 1989 तक भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के रूप में कार्य किया।
श्रीराम के साथ परासरन के आध्यात्मिक संबंध
श्री राम के साथ परासरन के आध्यात्मिक संबंध ही थे जो 92 साल की उम्र में जब घर के लोगों के नाम भूलने लगता है, परासरन के मुंह से हिंदू धर्मग्रंथों की ऋचाएं फूट रहीं थीं। उनके आध्यात्मिकता और कानूनी ज्ञान के मिश्रण ने अंततः हिंदुओं को राम जन्मभूमि पर पुनः दावा करने में मदद की। हिंदू पक्ष के मुख्य वकील के रूप में काम करते समय उनके समर्पण का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्होंने हर दिन मामले के हर पहलू पर काम किया। सुनवाई के दौरान परासरन ने दलील दी कि 433 साल पहले बाबर ने भगवान राम के जन्मस्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करके एक ऐतिहासिक गलती की थी और इसे ठीक करने की जरूरत है।
इस मामले में परासरन की सबसे उल्लेखनीय दलीलों में से एक यह थी, मुसलमान अयोध्या में किसी भी अन्य मस्जिद में प्रार्थना कर सकते हैं। अकेले अयोध्या में 55-60 मस्जिदें हैं। लेकिन, हिंदुओं के लिए यह भगवान राम का जन्मस्थान है, जिसे हम नहीं बदल सकते। कार्यवाही के दौरान एक और मुस्लिम पक्ष के तर्क एक बार मस्जिद, हमेशा एक मस्जिद के जवाब में परासरन का यह कहना था, मैं कहूंगा कि एक बार मंदिर हमेशा एक मंदिर होता है।
परासरन एक इंटरव्यू में कहते हैं, मैं 1957 से भगवान राम का कट्टर भक्त रहा हूं। अपनी दैनिक पूजा में मैं वाल्मिकी रामायण के कुछ अंश पढ़ता हूं, जो मैं आज तक करता हूं। जब से मैंने वाल्मिकी रामायण पढ़ना शुरू किया है तब से मैंने एक दिन के लिए भी यह अभ्यास बंद नहीं किया है। मैं न केवल राम जन्मभूमि मामले में पेश हुआ हूं, बल्कि मैं राम सेतु मामले में भी पेश हुआ हूं।
परासरन की राम भक्ति किसी उपमा की मोहताज नहीं है। जब देश में उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत की बहस खड़ी की जा रही है तो परासरन जैसे वरिष्ठ वकील की आस्था यह स्पष्ट कर देने के लिए पर्याप्त है कि राम भक्तों का दायरा किसी खास इलाके तक सीमित नहीं है। परासरन ही क्यों, रामलला के सिपाही के रूप में आईएएस केके नायर और पुरातत्ववेत्ता केके मोहम्मद भी दक्षिण भारत से ही आते हैं। यही भगवान राम की महिमा है कि जब उनकी प्रेरणा जागृत होती है तो निहंग सरदार फकीर सिंह से लेकर परमहंस रामचंद्र दास में असीमित साहस भर देती है। आज देश में करोड़ों राम भक्त इसी प्रेरणा से भरे हुए हैं और राम मंदिर की एक झलक पाने को बेताब हैं।

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