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नैनो केस में टाटा की जीत, बंगाल को देना होगा 766 करोड़ रुपये का हर्जाना..!

पश्चिम बंगाल में सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट को ममता बनर्जी से पहले की वामपंथी सरकार द्वारा अनुमति मिली थी। इस परमिशन के तहत बंगाल की इस जमीन पर रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो के प्रोडक्शन के लिए कारखाना स्थापित किया जाना था।
देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में से एक टाटा ग्रुप को पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत हासिल हुई है। दरअसल, वहां चल रहे पुराने सिंगूर जमीन विवाद में टाटा को बड़ी सफलता मिली है। अब ममता बनर्जी सरकार ग्रुप की ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स को 766 करोड़ रुपये देगी।
नैनो प्लांट को लेकर था विवाद
पश्चिम बंगाल में सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट को ममता बनर्जी से पहले की वामपंथी सरकार द्वारा अनुमति मिली थी। इस परमिशन के तहत बंगाल की इस जमीन पर रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो के प्रोडक्शन के लिए कारखाना स्थापित किया जाना था। तब ममता बनर्जी विपक्ष में थीं और वामपंथी सरकार की नीतियों के खिलाफ थीं और इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रही थीं। इसके बाद जब ममला बनर्जी की सरकार बनी, तो सत्ता पर काबिज होने के साथ ही उन्होंने टाटा ग्रुप को बड़ा झटका दे दिया।
टाटा से लेकर किसानों को लौटाई जमीन
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही एक कानून बनाकर सिंगूर की करीब 1000 एकड़ जमीन उन 13 हजार किसानों को वापस लौटाने का फैसला किया। बता दें ये वहीं जमीन थी, जिसका अधिग्रहण टाटा मोटर्स ने अपना नैनो प्लांट लगाने के लिए किया था। इस पूरे घटनाक्रम के बाद टाटा मोटर्स को अपना नैनो प्लांट पश्चिम बंगाल से हटाकर गुजरात में शिफ्ट करना पड़ा।
टाटा मोटर्स ने दी जीत की जानकारी
टाटा मोटर्स ने इस प्रोजेक्ट के तहत किए गए पूंजी निवेश के नुकसान को लेकर पश्चिम बंगाल के उद्योग, वाणिज्य और उद्यम विभाग की प्रमुख नोडल एजेंसी से मुआवजे के जरिए भरपाई किए जाने का दावा पेश किया था। सोमवार को इस मामले में टाटा मोटर्स को बड़ी जीत हासिल हुई। इस फैसले की जानकारी देते हुए टाटा मोटर्स की ओर से कहा गया कि तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने कंपनी के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है।
इस मामले में अब टाटा मोटर्स प्रतिवादी
ममता बनर्जी सरकार के अधीन पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम से 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है। इसमें 1 सितंबर 2016 से अधिग्रहण से वास्तविक वसूली तक 11 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी शामिल है।
2006 में किया गया था प्रोजेक्ट का एलान
रतन टाटा के इस ड्रीम प्रोजेक्ट का एलान टाटा गु्रप की ओर से 18 मई, 2006 को किया गया था। उस समय रतन टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे। इसके कुछ महीने बाद ही टाटा ग्रुप द्वारा प्लांट लगाने के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर बवाल शुरू हो गया। मई 2006 में किसानों ने टाटा ग्रुप पर जबरन जमीन अधिग्रहण करने का आरोप लगाते हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। फिर किसानों के साथ ममता बनर्जी भी इस प्रदर्शन में शामिल हो गईं। मामले पर अपना विरोध जाहिर करते हुए ममता बनर्जी ने उस समय भूख हड़ताल भी की थी।
विरोध के बाद गुजरात शिफ्ट हुआ था प्लांट
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी और स्थानीय किसानों के भारी विरोध के चलते 3 अक्टूबर 2008 को टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन रतन टाटा ने कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और नैनो के प्लांट को सिंगूर से बाहर निकालने का एलान कर दिया। हालांकि, नैनो प्रोजेक्ट स्थानांतरित करने के लिए रतन टाटा ने सीधे तौर पर ममता बनर्जी के नेतृत्व में जारी तृणमूल कांग्रेस के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद नैनो फैक्ट्री को गुजरात के साणंद में शिफ्ट कर दिया गया।

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